वर्दी वाला।

वो खाकी वर्दी मे है। शाम को देखा, बिल्डिंग के नीचे लगी बैंच पर, पड़ा हुआ था अपने एक झोले के साथ। ड्यूटी लगी है उसकी यहां, हां ,एक मरीज मिला है, कोरोना से ग्रसित और सील हो गई है बिल्डिंग अपनी। वैसे तो सोचता था दफ्तर ना जाना पड़े, पर अब घुटन सी लग... Continue Reading →

मजदूर है, मजबूर है।

बाँध के मन की गठरी में कुछ मूलभूत से सपनो को शहरों के वन वो आये थे रख गांव मे आश्रित अपनो को। सोचा था किस्मत और मेहनत मे युद्ध करा कर देखेंगे प्रतिघाती किस्मत पर अपनी मेहनत का हल जोतेंगे। उन स्वप्नो का रोपण होगा सींच के लहू-पसीने से पर अब ठप्प पड़ा हुआ... Continue Reading →

दियों से जुड़ता भारत।

हर बार दिवाली होती है घनघोर अमावस होती है, धरती पे होते दीप प्रजज्वलित ना चांद की आहट होती है। पर आज फलक से देखेगा वो दियों से जुड़ते भारत को हर विपदा मे साथ खड़े हो सदियों से लड़ते भारत को। देखेगा लौ आशाओं की लड़ती व्यापित अंधियारों से, परवानों को भश्मित करती, अविचल... Continue Reading →

रात का दर्ज़ी।।

सारी रातें पड़ी हैं अमावस सी मेरी वो दर्ज़ी जो इनमे चाँद तारे टांका करता था कही खो गया है शायद।। काले धागे समाप्त हो गए या अब उसकी झोली में कोई रौशन चाँद नही यही सोचता रहता हूं कुछ तो हो गया है शायद।। क्यों गुम हो गया वो अंधेरा छोड़ कर क्या वो... Continue Reading →

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