दियों से जुड़ता भारत।

हर बार दिवाली होती है
घनघोर अमावस होती है,
धरती पे होते दीप प्रजज्वलित
ना चांद की आहट होती है।

पर आज फलक से देखेगा वो
दियों से जुड़ते भारत को
हर विपदा मे साथ खड़े हो
सदियों से लड़ते भारत को।

देखेगा लौ आशाओं की
लड़ती व्यापित अंधियारों से,
परवानों को भश्मित करती,
अविचल विष-मय सायों से।

अन्धविश्वाश नही,ये विष के
अणु से लड़ने का विश्वास
मात्र जताने के माध्यम को
मन मे जागृत कौतूहल से,
आज फलक से देखेगा वो
दियों से जुड़ते भारत को।।

– सुनील

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